Electoral bonds
Electoral bonds : इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग को सौंपी जा चुकी हैं। चुनाव आयोग ने भी अपने बेवसाइट पर इससे जुड़ा डेटा शेयर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी उपलब्ध करा दी है। निर्वाचन आयोग की तरफ से इस डेटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है।
डेटा के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये बीजेपी को सबसे अधिक चंदा मिला है। डेटा के सामने आने के बाद विपक्ष इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर हमलावर है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल तो इससे सबसे बड़ा घोटाला बता रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने इस मामले में एसआईटी जांच की भी मांग कर दी है। वहीं, कांग्रेस की तरफ से इसे कथित रूप से दुनिया का सबसे बड़ा एक्सटॉर्शन रैकेट बताया जा रहा है। दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से इस चुनावी चंदे में पारदर्शिता की बड़ी पहल करार दिया जा रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लग चुकी है।
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर विपक्ष पूरी तरह से सरकार पर हमलावर हो गया है। एक तरफ राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल इस मामले में एसआईटी गठित करने की बात कह रहे हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने चुनावी बॉन्ड को स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा घोटाला बताया है। साथ ही जयराम रमेश ने कहा है कि चुनाव आयोग द्वारा साझा किया गया डेटा अधूरा है।
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के खिलाफ नहीं है, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) का इस्तेमाल चाहती है ताकि मतदाता ये सुनिश्चित कर सके कि उनका वोट सही तरीके से डाला गया है। जयराम रमेश महाराष्ट्र के पालघर जिले के वाडा में एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी पिछले साल से मुख्या चुनाव आयुक्त से मिलने का समय मांग रही है, लेकिन अभी तक उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया है।
‘चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों में अधूरी जानकारी’ – (Electoral bonds)
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने सवाल किया ‘आखिर चुनाव आयोग विपक्षी दलों से मिलने से क्यों डरता है।’ चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों का हवाला देते हुए रमेश ने कहा कि इसमें अधूरा विवरण दिया गया है। जयराम रमेश ने कहा कि सूची में चार श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी उनकी जिन्होंने चुनावी बॉन्ड खरीदे और सरकारी अनुबंध प्राप्त किए।
दूसरी श्रेणी में वो हैं जिन्होंने जांच एजेंसियों की धमकी के कारण बॉन्ड खरीदे। तीसरी श्रेणी में वो लोग हैं जिन्होंने अनुबंध पाने के लिए रिश्वत के रूप में बॉन्ड खरीदे। चौथी श्रेणी में वो लोग हैं, जिन्होंने मुखौटा कंपनियों के माध्यम से खरीदारी की। उन्होंने कहा कि ‘ये आज़ाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है। हमारे पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है, हम जनता की अदालत में जाएंगे।’
SIT जांच की कर चुके हैं मांग – (Electoral bonds)
कपिल सिब्बल ने साफ कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कंपनियों ने राजनीतिक दलों को अपने हित में साध लिया है। उन्होंने कहा कि डेटा से साफ पता चलता है कि घाटे में चल रही कंपनियों ने भी राजनीतिक दलों को इलेक्टरोल बॉन्ड के जरिए चंदा दिया।
हालांकि, सिब्बल ने यह भी कहा कि उन्हें पता है कि इस मामले की कोई जांच नहीं होगी। सिब्बल ने इस मामले में सिर्फ कोर्ट से ही उम्मीद जताई। सिब्बल ने 2जी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि एक एसआईटी का गठन कर इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया। साथ ही इस चंदे की एवज में उसे कितना फायदा पहुंचा।
Electoral Bonds: घोटाला या इत्तेफाक? इलेक्टोरल बॉन्ड से वोटर की जिंदगी पर क्या असर? – (Electoral bonds)
मान लाजिए आप महीने में 50 हजार रुपए कमाते हैं, जिससे आपके घर का खर्च चलता है. बिजली-पानी का बिल, राशन, सिलेंडर. इन सब के लिए पैसे देने पड़ते हैं. अब इस हालत में क्या आप किसी को 2 लाख रुपए या 3 लाख रुपए ऐसे ही दे सकते हैं?
इसके तीन जवाब हैं कि अगर आपको किसी बात का डर है कि पैसे नहीं दिए तो मुश्किल हो जाएगी, परेशान किया जाएगा. समझ लीजिए जैसे अंग्रेजों को लगान देना पड़ता था वैसे ही…या फिर आप किसी से बेइंतहा प्यार करते हैं और उसे जरूरत है तो फिर आप कैसे भी कर के कर्जा उधार कुछ भी करके अपनी कमाई से दोगुने-तीगुने पैसे दे देंगे. लेकिन दूसरा जवाब है कि बिल्कुल नहीं दे सकता.. मेरे बस का नहीं है या कहेंगे मेरे मेहनत की कमाई है.
दरअसल, चुनावी चंदा (Electoral Bonds) का डेटा पब्लिक डोमेन में आने के बाद कुछ ऐसी ही कहानी सामने आई है.. अब सवाल है कि इन चंदों से आपका क्या लेना देना है? इस वीडियो में हम आपको यही बताएंगे कि कैसे चुनावी चंदे राजनीतिक दल और कंपनियां ही नहीं आपके भविष्य का भी फैसला करती है. इसलिए हम पूछते हैं जनाब ऐसे कैसे?
सरकार कह रही है कि ब्लैक मनी को हटाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड आया था, लेकिन काले गाउन पहने सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस स्कीम को असंवैधानिक बताया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड बेचने वाले इकलौते बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सब डेटा सामने रख दो. एसबीआई का लंच टाइम वाला बहाना भी काम नहीं आया, और डेटा सामने रखना पड़ा.
डिटेल में जाने से पहले आपको बता दें कि किस पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कितना चंदा मिला है. – (Electoral bonds)
बीजेपी 8,718.85 करोड़ रुपये
कांग्रेस 1,864.45 करोड़ रुपये
टीएमसी 1,494.28 करोड़ रुपये
बीजेडी 1,183.5 करोड़ रुपये
दवा टेस्ट में फेल हुई कंपनियों ने दिया चुनावी चंदा – (Electoral bonds)
ऐसे में अगर आपको पता चले कि ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल की बीमारियों का इलाज करने वाली कई बड़ी दवा की कंपनी एक तरफ ड्रग टेस्ट में फेल हो रही हों, दवा की कीमत बढ़ रही हो और दूसरी तरफ यही कंपनियां राजनीतिक दलों को करोड़ों का चंदा दें, तो सवाल उठेगा कि इतनी कमाई हो रही है तो दवा के दाम में ही कुछ कमी कर देते..
बीबीसी हिंद पर राघवेंद्र राव और शादाब नज़्मी की रिपोर्ट आई है.. जिसमें उन फार्मा कंपनियों का जिक्र है जिन्होंने चुनावी चंदा दिया है और वो दवा टेस्ट में फेल हुई थीं. इनमें टोरेंट फार्मास्यूटिकल लिमिटेड, सिप्ला लिमिटेड, सन फार्मा लेबोरेटरीज लिमिटेड और जाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड जैसी कई कंपनियां शामिल हैं.
टोरेंट फार्मास्यूटिकल लिमिटेड – ने 77.5 करोड़ का चंदा दिया – Electoral bonds
सबसे ज्यादा चंदा 61 करोड़ बीजेपी को मिला. कांग्रेस को 5 करोड़ का चंदा दिया. – Electoral bonds
सिप्ला – ने 39.2 करोड़ का चंदा राजनीतिक दलों को दिया – Electoral bonds
जिसमें सबसे ज्यादा 37 करोड़ बीजेपी को और फिर 2.2 करोड़ कांग्रेस को दिया. – Electoral bonds
सन फार्मा – ने 15 अप्रैल 2019 और 8 मई 2019 को कुल 31.5 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे – Electoral bonds
ये सारे चंदे कंपनी ने बीजेपी को दिए.
जाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड – 10 अक्टूबर 2022 और 10 जुलाई 2023 के बीच इस कंपनी ने 29 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे. इसमें से 18 करोड़ रुपए बीजेपी को, 8 करोड़ रुपए सिक्किम क्रान्तिकारी मोर्चा और 3 करोड़ रुपए कांग्रेस को दिए गए.क्विंट की टीम ने जब स्टेट बैंक के डेटा को खंगाला तो पता चला कि 20 से ज्यादा बड़ी फार्मा कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए करीब 500 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया.
अब कुछ और सवाल. क्या इलेक्टोरल बॉन्ड में ट्रांस्पैरेंसी थी? जवाब है नहीं.. अगर ट्रांस्पैरेंसी होती तो आम लोगों को पता चलता कि किसने किसे चंदा दिया है? अगर ट्रांस्पैरेंसी होती तो सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक नहीं कहती.
अब आप खुद सोचिए कि चंदे का आपकी जिंदगी से कनेक्शन है या नहीं.. और पूछिए जनाब ऐसे कैसे?
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